समाजवादी पार्टी के गठन की मजबूत दीवार “बेनी बाबूजी” का निधन एक युग का अंत है…..

27 मार्च 2020 निधन-

समाजवादी पार्टी के गठन की मजबूत दीवार “बेनी बाबूजी” का निधन एक युग का अंत है…..

मुलायम सिंह यादव जी चाहे जिन परिस्थितियों में देश की राजनीति में जब अलग-थलग पड़ गए थे तो उन्हें समाजवादी पार्टी के गठन में जिस शख्स ने सबसे अधिक बल प्रदान किया था वे बेनी प्रसाद वर्मा जी ही थे।

1989 में केंद्र में जनता दल के सत्तासीन होने के बाद यूपी व बिहार में मुलायम सिंह यादव जी व लालू प्रसाद यादव जी का अभ्युदय किसे याद नही होगा

लेकिन संकट दोनों लोगो के समक्ष आया जिसमें कुंदन की तरह तप कर निकलना थ

।मुलायम सिंह यादव जी पर रामभक्तो पर गोली चलवाने की तोहमत थी तो जनता दल के अनेक नेताओ की टांग खिचौवल अलग,ऐसे में जूझना कोई सामान्य बात न थी।

मुलायम सिंह यादव जी यदि अपनी अलग राह न बनाते तो यूपी में जनता दल द्वारा सत्ता किसी और के हाथों में सौंप दी जाती।

सवाल सत्ता पर पकड़ की थी।कोई नही चाहता है कि सत्ता पर उसकी पकड़ ढीली हो।यूपी में मुलायम सिंह यादव जी ने पहली बार सत्तासीन होने के बाद अपनी लोकप्रियता का जो डंका बजा दिया था वह उन्हें कायम रखना था।

लखनऊ के लेमार्टनियर मैदान में बीस लाख लोगों की रैली कर मुलायम सिंह यादव जी ने दिखा दिया था कि यूपी में उनका कोई विकल्प नही है।यह रैली तत्कालीन जद नेताओं को अच्छी नही लगी थी लिहाजा मुलायम सिंह यादव जी का विकल्प ढूंढा जाने लगा था।

मुलायम सिंह यादव जी का चरखा दांव मशहूर है जो उन्होंने मुख्यमंत्री रहते एक पत्रकार साथी के कहने पर उन्ही पर लगा कर दिखा दिया था,

उसका चलना अब ऐसी परिस्थितियों में लाजमी था जब उन्हें सत्ताच्युत करने की कोशिशें तेज हो चली थीं।

चूंकि उस दौर में मैं वीपी सिंह जी के खेमे में था इसलिए उन बातों को ठीक से जानता हूँ।मुलायम सिंह यादव जी ने यूपी की सत्ता पर पकड़ बनाये रखने के लिए जनता दल तोड़ दिया।सत्ता चली गयी,मण्डल की लड़ाई भी भंवर में फंस गई लेकिन मुलायम सिंह यादव जी का विकल्प नही खड़ा हो सका।

जनता दल तोड़ने व सत्ता जाने के बाद 1992 में जब समाजवादी पार्टी के गठन की कवायद शुरू हुई तो मुलायम सिंह यादव जी अकेले थे।

उन्हें सहयोगियों की जरूरत थी।मुलायम सिंह यादव जी को पिछड़ी जातियों में एक कद्दावर नेता चाहिए था जो कोई और नही बल्कि बेनी प्रसाद वर्मा जी ही थे जिनका साथ उन्हें आवश्यक था।जनता दल तोड़ समाजवादी जनता पार्टी में चंद्रशेखर जी के साथ जाने के बाद अब पुनः नए दल को गठित करने के लिए अपने अलावे कोई कद्दावर नेता चाहिए था जिसकी तलाश मुलायम सिंह यादव जी को करनी थी।

लखनऊ से सटे लगभग 10 जिले ऐसे थे जिनमें बेनी बाबू जो मुलायम सिंह यादव जी के मंत्रिमंडल में लोक निर्माण मंत्री थे,का अत्यधिक प्रभाव था लिहाजा उन्हें जोड़ना 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन में जरूरी था।

मुलायम सिंह यादव जी ने जब समाजवादी पार्टी गठित करने का ऐलान कर बेगम हजरत महल पार्क में अधिवेशन रखा तो बेनी बाबू को लेने वे खुद गए थे

।नेताजी के जाने के बाद बेनी बाबू अधिवेशन में पँहुच मुलायम सिंह यादव जी को अपना नेता घोषित कर उनके साथ खड़े हो गए थे और यूपी में एक ऐसा क्षेत्रीय विकल्प “समाजवादी पार्टी”खड़ा हो गया था जो आज भी राष्ट्रीय पार्टियों के समक्ष 1992 से चुनौती बना हुआ है।

हम सबने वह दौर भी देखा है जब बेनी बाबू की जगह अमर सिंह ने ले लिया था और बेनी बाबू एवं आजम खान साहब जो समाजवादी पार्टी के गठन के वक्त की दो धुरियाँ थे,सपा से अलग हो गए थे।बेनी बाबू कांग्रेस में चले गए थे और चमत्कारिक रूप में कांग्रेस लोकसभा में इकाई से दहाई में पँहुच गयी थी।

परिस्थितियां बदलीं, बेनी बाबू जिस अमर सिंह को महामानव कहते थे,वे अमर सिंह सपा से दूर हुये,बेनी बाबू पुनः अपने नेता मुलायम सिंह यादव जी के पास आये और समाजवादी परचम के साथ खड़े रहते हुये अखिलेश यादव जी को भरपूर आशीर्वाद देते हुये समाजवाद का अलख जगाने लगे

लेकिन अफसोस आज वे हम सबको छोड़कर अलविदा कह गए जिसका हम समाजवादियों को सदैव दुख रहेगा
कि एक वंचित हितरक्षक मसीहा हम सब के बीच से चला गया।

मैं ऐसे महान समाजवादी नेता “बेनी बाबूजी” को कोटिश नमन करते हुये उनकी स्मृतियों के समक्ष नतमस्तक हूँ।नमन है बेनी बाबू जी!

-चंद्रभूषणसिंहयादव

कंट्रीब्यूटिंग एडिटर-“सोशलिस्ट फ़ैक्टर”

लेख सोशल मीडिया से प्राप्त

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