मुलायम ने जब आम मरीजों को भर्ती कराया!

मार्च 1994 की बात है। मेरे रिश्ते के एक नाना जी की दोनों किडनी फेल हो गयी थीं। ये वो जमाना था जब लोग दूसरे शहर जाते थे तो अपनी जान पहचान या रिश्तेदारी में ही रुकते थे। होटल में रुकना तो कल्पना से परे था। जिनकी जान पहचान नही होती थी वो हॉस्पिटल के पार्क में ही अपना ठिकाना बना लिया करते थे।

खैर ,नाना जी को केजीएमयू ने भर्ती करने से मना कर दिया और संजय गांधी पीजीआई के लिए रिफर कर दिया।
में तो उस समय किशोरावस्था में ही था। नानाजी के साथ उनके पुत्र और भतीजे भी थे।
अगली सुबह एक टैम्पो पर रोगी को लादकर हम सब पीजीआई पहुँचे। ओपीडी में दिखाया गया। डॉक्टर साहब ने तुरन्त भर्ती के लिए लिख दिया। लेकिन कोई भी बेड नही खाली था। कहा- अगले दिन आइये,शायद कोई व्यवस्था हो जाये ?
हम फिर सुबह चौराहे से टैम्पो तय करके लाये और पीजीआई पहुंच गए। नतीजा वही ढाक के तीन पात। अगले दिन की उम्मीद में फिर बीमार सहित हम सब वापस घर लौट आये।
रोगी की तबियत बिगड़ती जा रही थी। पेशाब से खून आ रहा था, एक लोहे के तसले में बालू भरकर उसमे उन्हें बिस्तर पर ही मूत्र विसर्जन की टेम्परेरी व्यवस्था की गई।
इसी तरह से हम तीसरे दिन भी पीजीआई गए और मायूस लौट आये। बीमार को उसके हाल के हवाले करने की हमारी परंपरा कभी नही रही है। सगे सम्बन्धी अपना पूरा प्रयास करते हैं।
चौथे दिन भी वही हुआ। बेड खाली नही। नाना जी को हमने गेट के पास चादर बिछा कर लिटा रखा था।
अचानक अस्पताल में हलचल मच गई। सभी बड़े डॉक्टर गेट के पास नजर आने लगे। झाड़ू पोंछा लगना शुरू हो गया।
पूछने पर पता चला कि मुख्यमंत्री जी कांग्रेसी नेता प्रमोद तिवारी जी को देखने आ रहे हैं। गार्ड ने आकर कहा – मरीज को सामने पार्क में ले जाओ। हम रोगी को हटा ही रहे थे कि तब तक कारों का काफिला आकर पोर्च में रुक गया और एक एम्बेसडर कार से निकलकर छोटे कद के बड़े नेता मुलायम सिंह तेज चाल में चलते हुए अंदर नज़र आये।
नेता जी नाना जी औऱ उनके जैसे 3 औरों को देखकर तुरंत रुक गए और पीजीआई के सुपरिंटेंडेंट से फौरन सवाल किया कि ये भर्ती क्यों नही है ? जबाब मिला जनरल वार्ड में बेड नही खाली हैं।
नेताजी बोले – प्राइवेट वार्ड में जगह है,वीआईपी वार्ड में जगह है क्या ? एक कमरे में चारों को रखिये, इलाज सबका होना चाहिए।
वहीं पर खड़े खड़े नेताजी ने पीजीआई को उस समय 2 करोड़ का बजट आवंटित कर दिया ताकि नए वार्ड बन सकें।
नानाजी का इलाज शुरू हो गया और वो 20 दिन तक भर्ती रहे। इसके बाद डॉक्टरों ने जबाब दे दिया कि अब इन्हें घर ले जाइए और सेवा करिए। नानाजी इसके एक हफ्ते बाद शरीर त्याग दिए।
दो महीने बाद मामा को ईलाज के दौरान खर्च हुए 60 हजार का चेक भी मुख्यमंत्री कार्यालय की डाक से प्राप्त हो गया।

मार्च 2012 में Akhilesh Yadav जी यूपी के मुख्यमंत्री बने । स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके सामने हेल्थ विभाग को पुनर्स्थापित करने की चुनौती थी। पिछली मायावती सरकार में प्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला NRHM उनके सामने था। सरकारी अस्पतालों से रुई,पट्टी,गाज,और सिरिंज तक गायब हो चुकी थीं।
अखिलेश जी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और शपथ ग्रहण करते ही अस्पतालों में एक रु के पर्चे पर 5 दिन की दवाई मुफ्त मिलने लगी,वार्डो में भर्ती मुफ्त हो गयी। कुछ दिन बाद पैथोलॉजी में जांचे मुफ्त हो गईं, गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड मुफ्त हो गया,एक्सरे मुफ्त हो गया।
इसी क्रम में अखिलेश सरकार ने प्रदेश में 14 नए मेडिकल कॉलेज बनवाने आरम्भ कर दिए। एम्स के लिए जमीन दी और गोरखपुर में जापानी इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारी के लिए स्पेशल बाल रोग विभाग बनवाया। 108 और 102 समाजवादी एम्बुलेंस एक फोन पर 10 मिनट में हाजिर हो मरीज और दुर्घटना में घायल को हॉस्पिटल पहुंचा देती थीं।
सनद रहे, अखिलेश सरकार में साँप काटे का टीका (ASV) और कुत्ता काटे की सुई (ARV) जैसी वैक्सीन एक रु के पर्चे में लगती थी। जो बसपा सरकार में लोग बाहर मेडिकल स्टोर से लगभग 400 रु में खरीद कर लगवाया करते थे। अखिलेश जी ने चिकित्सा के क्षेत्र में समाजवादी परम्परा को कायम रखा। सैकड़ो जरूरतमंदों को बिना जाति धर्म के भेदभाव के जनता दरबार मे लाखो रु इलाज के लिए मिल जाते थे। विवेकाधीन कोष से हजारों लोग लाभान्वित हुए।

जानकारी के लिए बता रहा हूँ, नोट कर लीजिए ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आवे। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नाम पर भगवा सरकार आई और ये सब बीते दिनों की बात हो गयी। बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री कम महंत ज्यादा वाले योगी जी निर्माणाधीन 14 मेडिकल कालेजों का बजट 2344 करोड़ से घटाकर लगभग आधा 1148 करोड़ कर चुके हैं। एमपी और यूपी के कई जिलों के रोगियों के ईलाज में सुलभ सैफई पीजीआई का बजट 90 करोड़ से घटाकर 30 करोड़ कर चुके हैं। अस्पतालों में दवाईयों का तोड़ा है, ऑक्सीजन की कमी से बच्चे मर रहे हैं। एम्बुलेंस में डीजल नही है।

याद रखिये,सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने वाले अधिकतर पत्रकार, वकील, किसान, मजदूर,अल्पसंख्यक और बेरोजगार लोग ही होते हैं। तुलना कीजिये और समाजवादी लोगो के उस वायदे को याद कीजिये जो वो अक्सर कहते हैं। “रोटी कपड़ा सस्ती हो,दवा पढ़ाई मुफ़्ती हो !
#सत्यार्थ

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